मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

आपका मानसिक स्वास्थ्य या आपकी मानसिक स्थिति अच्छी होने आपका शारीरिक स्वास्थ्य भी दिखेगा हरा-भरा

मानसिक स्वास्थ्य




मानसिक स्वास्थ्य में हमारी भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्थिति शामिल हैं। इसका प्रभाव हमारे सोचने के तरीके, अनुभव और कार्य करने पर पड़ता है। मानसिक स्वास्थ्य से तनाव का सामना करने, अन्य लोगों से संबंध स्थापित करने और विकल्प चुनने में भी मदद मिलती है। मानसिक स्वास्थ्य बचपन और किशोरावस्था से लेकर वयस्क जीवन की प्रत्येक अवस्था में महत्वपूर्ण है।

यदि किसी मनुष्य के जीवन में उसे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां होती हैं, तो उसके सोचने, मनोदशा और व्यवहार पर असर पड़ता है। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं कई कारकों से होती हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं:

• जैववैज्ञानिक कारक, जैसे वंशानुगत या मश्तिष्क कैमिस्ट्री

• जीवन के अनुभव, जैसे आघात या दुर्व्यवहार

• मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बारे में पारिवारिक इतिहास

अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए है जरूरी खुश रहना




मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ किसी व्यक्ति में सकारात्मक व नकारात्मक बातों में अंतर करने की क्षमता, जीवन की विभिन्न स्थितियों और घटनाओं को उनके महत्व के अनुसार अनुभव कर अपने जीवन के अनुरूप स्थिति पाने के लिए विभिन्न कार्यों के बीच सामंजस्य बनाने की क्षमता विकसित करना है।

सुख क्या है


एक ऐसी अनुकूल स्थिति है, जिसमें मनुष्य को कुछ अच्छा अनुभव होता है, मतलब अच्छा लगने लगता है, इसी स्थिति को सुख कहा जाता है। सुख का अनुभव मन में होता है। खुशी व आनंद एवं अन्य सुख देने संबंधी स्थितियां मिलने पर ही मनुष्य सुखी हो सकता है, परंतु आवश्यक नहीं है कि कोई या विभिन्न चीजें पर्याप्त मात्रा में होने पर कोई व्यक्ति सुखी है। अतः सुख, विभिन्न चीजों के सामूहिक रूप से मिलने वाले परिणाम से होने वाली खुशी है। मनुष्य अपने जीवन में किसी एकल चीज से सुख नहीं पा सकता है अर्थात मनुष्य को सुख तभी प्राप्त हो सकता है, जब उसका जीवन सफल है। महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी व्यक्ति को जीवन में हमेशा सुख मिलेगा संभव है और नहीं भी। मानव जीवन में सुख-दुख तो आते-जाते रहते हैं, उन स्थितियों से उबकर सामान्य स्थिति में आकर अपने दैनिक कार्यों को अनुकूल बनाते हुए अपनी स्थिति बेहतर करना सुख का दूसरा नाम है अर्थात हम सुख को अनुकूल स्थिति नाम दे सकते हैं। कभी-कभी देखा जाता है कि मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए दूसरे लोगों को दुरूपयोग करने लगता है, जो सरासर गलत है। इस तरह के गलत कृत्यों के परिणाम जब एक सीमा पार करते हैं, तो मनुष्य को ऊपर से नीचे गिरने में समय नहीं लगता है। ताजा और चर्चित घटना जो बाबा रहीम और हनीप्रीति के साथ हुई है, उसे हम सभी को ये सीख मिलती है कि इंसान को कभी भी बुरे कार्य नहीं करने चाहिए। विशेष रूप से, भारत में कुछ पाखंडी लोग स्वयं को भगवान का अवतार बताते हुए और गुंडागर्दी एवं अनैतिक तरीके से कमाए पैसे का दुरूपयोग कर देश की सत्ता हासिल करने में कामयाब होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनके अनुयायी, चेले-चपेटे समाज में बुराईयों को जन्म देते हैं जिसका आम आदमी और समाज के जीवन पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इसलिए, देश के सभी नागरिकों से आहवान किया जाता है कि कोई भी निर्णय लेने से पहले सोच लें कि इसका प्रभाव किस पर पड़ेगा। अपने स्वयं का लाभ न देखें, क्योंकि इसका दुष्प्रभाव आगे की पीढ़ी पर पड़ता है।

खुशी क्या है, क्या अच्छे स्वास्थ्य के लिए खुश रहना जरूरी है



खुशी वह स्थिति है, जिसमें आपके मन की स्थिति अन्य समय की अपेक्षा कुछ भिन्न होती है, आपको अच्छा लग रहा होता है, कारण जो भी हो। खुशी, आपको किसी चीज की संतुष्टि होने पर होती है, वह संतुष्टि चाहे आपको कोई चीज खाने से हुई हो, पीने से हुई हो, देखने से हुई हो, मिलने से हुई हो या फिर कोई ऐसा काम करने से हुई हो, जिसे आप लंबे समय से करना चाहते थे। अधिकांश लोगों की खुशी उनके चेहरे पर मुस्कान के रूप में दिखती है। मानव जीवन में होने वाली खुशी को उम्र के अलग-अलग पड़ाव व स्थितियों के आधार पर बांटा गया है:
स्थायी खुशी
अस्थाई खुशी
आंशिक खुशी
पारिवारिक खुशी
सामुदायिक खुशी
व्यक्तिगत खुशी
व्यापक खुशी



अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें, मोबाइल और लैपटॉप नहीं

कैसे दिलाएं उपयुक्त शिक्षा बच्चे को...बच्चा अपने आपपास के वातावरण से सीखता है!.... बच्चों को साफ व स्वस्थ रखने का मतलब यह नहीं है कि बच्चों को मिट्टी में खेलने न दें, उनके शरीर को विभिन्न जलवायु की परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता मिलेगी और शरीर के अंग मजबूत होंगे। आज के आधुनिक सुविधायुक्त स्कूलों में वातानुकूलित वातावरण से बच्चों में वास्तविक शक्ति का ह्रास हो रहा है। इस प्रकार की सुविधाएं सिर्फ चंद क्षणों के लिए हैं, इनके दुष्प्रभाव अधिक होते हैं।



बच्चों को शिक्षा दें, परंतु उन्हें ये कभी न सिखाएं कि अधिक से अधिक पैसा कमाना है। आवश्यकताएं पूर्ति के लिए सुलभ साधन होना पर्याप्त है। वरना जीवन खुशहाल होने के बजाय और अधिक उबाऊ व इतना दुष्कर हो जाएगा कि लोगों को अपने कृत्यों से ही घृणा होने लगेगी।

सावधान हो जाएं


जैसा कि सर्वविदित है, हम पहले से चर्चा कर रहे थे, बच्चों को मोबाइल फ़ोन से दूर रखें या उनके द्वारा मोबाइल व कंप्यूटर के उपयोग पर नियंत्रण रखें। आज की चकाचौंध और व्यस्त लाइफ स्टाइल में लोग नई-नई तकनीक उपयोग करते हुए डिजिटल रूप में अपने दैनिक कार्य संपादन करते हैं, तो इसका असर उनके बच्चों पर पड़ रहा है, और बच्चे भी मोबाइल गेम, म्यूजिक और फ़ोटोग्राफ्री इत्यादि क्रिएटिव कार्यों में रूचि ले रहे हैं, जिसका गलत दिशा में उपयोग करने से परिणाम बहुत खतरनाक और जान-माल का नुकसान होने की कई घटनाएं सामने आई हैं। इसलिए सभी को इस नियंत्रण रखने की जरूरत है, जैसे अभी वर्तमान में बच्चों के द्वारा व्लू व्हेल गेम खेलने से खतरनाक परिणाम आए हैं, और आगे और भी इस प्रकार के मामले उजागर हो सकते हैं। उपयुक्त शिक्षा बनाम उच्च शिक्षा .... आज के दौर में लोग उच्च शिक्षा तो ले लेते हैं पैसे कमाने के लिए, पर क्या वह उच्च शिक्षा ले पाता है? उच्च शिक्षा प्राप्त कर लोग अच्छी नौकरी पा लेते हैं! क्या मनुष्य जीवन के लिए यह पर्याप्त है?

आज से वर्षों पहले भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था, जहां प्राकृतिक संसाधनों की भरमार होने के साथ-साथ आदर्श शिक्षा के केंद्र थे, जहां गुरू-शिष्य की प्रणाली के आधार पर शिक्षा दी जाती थी, जिसके परिणामस्वरूप देश को अनेक महापुरूष मिले थे। आज्ञाकारिकता, विनम्रता, धैर्य व ईमानदारी जैसे विशिष्ट गुण आज के लोगों में नहीं होने का मतलब है कि उन्होंने उचित शिक्षा नहीं मिली है और न ही उन्हें अच्छे संस्कार मिले हैं। शिक्षा एक मौलिक अधिकार है, परंतु इस अधिकार की सीमाएं लांघकर आज की युवा पीढ़ी अपनी पर्सनल लाइफ में इतने व्यस्त हो जाते हैं, कि उनके मां-बाप और पूर्वज यह कहते नहीं थकते कि शायद शिक्षा में कहीं कमी रह गई। यकीनन, यह बात 100% सही है, कि जिस समय मां-बाप को सहारे की जरूरत होती है, उनके बच्चे उनके साथ व पास नहीं होते हैं। शायद ही नहीं, इस बात से सभी लोग विदित होंगे कि अधिक पैसा कमाने के कारण ही अधिकांश परिवारों में मां-बाप अपने बच्चों से इतने दूर हैं कि तकनीक के इस दौर में भी उनके बच्चे उनसे इतने दूर हैं कि मा-बाप के रिश्ते में इतनी दूरियां बन गई हैं कि उन्हें केयर टेकर की जरूरत पड़ी है।



ध्यान लगाना - अध्यात्म भी अनिवार्य है अच्छे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए



ध्यान लगाने से मन में शांति मिलती है। मनुष्य जीवन में आपको प्राकृतिक शक्तियों में विश्वास करना ही होगा, आग, हवा, पानी व मिट्टी ये चार ही वास्तविक भगवान के रूप में हैं; इनके आधार पर ही मानव जाति में विभिन्न धर्मों व समुदायों ने अपने जीवन के अनुकूल कुछ विशेष नाम दिए हैं ईश्वर को – जबकि भगवान सिर्फ एक है, वह हर वस्तु के हर भाग में बसा है। इसलिए, जब भी समय मिले, कुछ समय के लिए ध्यान जरूर लगाएं, इससे आत्मविश्वास बढ़ेगा और आप जीवन को और करीब से जानेंगे। इस बात का कुछ फर्क नहीं पड़ता है कि आप किस देश, ज़ोन में निवास करते हैं और आप किस धर्म के हैं। आप कोई सी भी तकनीक उपयोग में लाते हैं, भगवान एक है, जो हमेशा ऑनलाइन है, उसकी तकनीक में कभी कोई अपडेट नहीं हुआ है।

आइए, पता करें भगवान की कौन सी प्रार्थना आप या हम सभी को सुख दे सकती है!



ये सभी लोग जानते हैं कि भगवान को पैसे की जरूरत नहीं होती है, तो मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों व अन्य धार्मिक कार्यों में कुछ पैसे का योगदान करें?
हां, भगवान को पैसों की जरूरत तो नहीं है, परंतु इस व्यापक प्रक्रिया में संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है, जिसके लिए पैसे से योगदान या सहायता करना अत्यावश्यक है। जो लोग अधिक से अधिक धन-दौलत का चढ़ावा मंदिरों में करते हैं, तो भगवान केवल उन्हीं हैं बल्कि उस प्रत्येक इंसान या प्राणी के लिए भी भगवान हैं, जिसे इस बात ज्ञान है कि संसार सभी का है, भगवान भी सभी के लिए हैं। जिसे एक दूसरे की सुख-दुख की घटनाएं अनुभव होती हैं और अपनी सामर्थ्य के अनुसार मदद की भावना रखता है और किसी न किसी रूप में मदद के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाता है।

आप अक्सर क्या मांगते हैं भगवान से, जब आप दैनिक रूप से अपने घर या किसी सार्वजनिक पूजा स्थल में भगवान के आगे हाथ जोड़ते हैं या माथा टेकते हैं! हर इंसान अपने और अपनों के शुभ की प्रार्थना करता है, पर क्या कोई संपूर्ण जगत के सुख के लिए प्रार्थना करता है, जो इस प्रकार से है---- हे भगवान सारी दुनिया में सुख व शांति रहे! हम सभी को यह प्रार्थना करनी चाहिए, जिससे दुनिया के किसी भी कोने में हो रहे बुरे कार्य नष्ट हों और शांति कायम रहे।

अपने बच्चों को मोबाइल गेम से दूर रखें और घर में ही अपने साथ उनका भी मनोरंजन करें, कुछ इस तरह से ....हर मां कहेगी मैं भी खेलूंगी अपने बच्चों के साथ





मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है हेड मसाज या सिर की मालिश



आइए करें, घर बैंठे करें हेड मसाज / व्यायाम और चेहरे को बनाएं सदाबहार जवां









शरीर स्वस्थ बने रहने के लिए खुश रहना व जहां भी हंसने का संयोग बने, दिल खोलकर हंसे, इससे संपूर्ण शरीर की कोशिकाएं खुलती हैं और चेहरे में चमक आती है। मनुष्य की खुशी के लिए ही वर्तमान समय में विभिन्न प्रकार के फेस्टिविल मनाए जाते हैं, यहां तक कि आज हम सभी लोग बर्थडे को अपने परिवार व मित्रों के साथ कितनी खुशी से सेलिब्रेट करते हैं, इसके साथ-साथ फादर डे, मदर डे, चिल्ड्रन डे, वूमन डे व अन्य कई दिन हम खुशी पाने, शेयर करने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। मनुष्य जीवन मिला है, तो से अच्छी तरह से जीना सीखना चाहिए। मनुष्य के स्वास्थ्य को बेहतर व स्वस्थ रखने के लिए पूरी दुनियां में पर्यावरण दिवस मनाया जाता है, जिसके माध्यम से वातावरण को प्रदूषण मुक्त कर मानव ही नहीं, प्राणिमात्र के अच्छे स्वास्थ्य को बल मिलता है। बहुत सारी खुशियां हैं जीवन में, बस अनुभव करने का अंदाज होना चाहिए। मनुष्य को कई अवसर मिलते हैं, जीवन में अधिक से अधिक खुशी लाने के जिससे शरीर का विकास होने के साथ-साथ तन-मन स्वस्थ होते हैं, जैसे जब लड़का-लड़की शादी करते हैं, ये मनुष्य के लिए खुश होने का बेहतरीन अवसर है, जिसमें खुशियां समय के साथ-साथ बढ़ती रहती हैं। एक छोटे से बच्चे को खेलने की कोई चीज मिलती है, तो वह कितना खुश होता है, हर कोई महसूस कर सकता है उसे देखकर। मनुष्य ही नहीं यहां तक कि जानवर भी खुश होते हैं अपने समूह के जानवरों से मिलने पर। खुशी का महत्वपूर्ण योगदान है अच्चे स्वास्थ्य पर! आज से 100-200 वर्ष पहले हमारे पूर्वजों का जीवन यापन करना बहुत कठिन था। वे बहुत मेहनत करते थे और प्राकृतिक चीजों का सेवन करते थे। क्या उनके द्वारा परिश्रम व प्राकृतिक चीजों का सेवन करने के कारण ही उनके जीवन की अवधि वर्तमान समय के मनुष्य जीवन से अधिक रही थी? संभवतः यही मुख्य कारण है कि उस दौर के जीवन में प्राकृतिक चीज प्रचुर मात्रा में मौजूद थे। उन्होंने काम करने में अपना पसीना बहाया, जिससे उनका शरीर कठोर और मजबूर हुआ, और खाने में प्राकृतिक चीजों का सेवन किया, जिससे उन्हें शक्ति मिली। उस समय बनावटी चीजें कम तो क्या बिल्कुल भी नहीं थी। सभी लोग एक जैसे थे। पृथ्वी में प्राकृतिक संपदा थी, जिससे उन्होंने एक प्रकृति के प्राणी के रूप में जीवन यापन किया। आज के दौर में खाने की असली चीजें उपलब्ध ही नहीं हैं, हो भी नहीं सकती, प्रदूषण इतना अधिक हो गया है कि सभी खाद्य पदार्थों में प्रदूषण का अंश शामिल है और कृत्रिम पदार्थों का उपयोग करने से खाद्य चीजों की गुणवत्ता शक्ति कम हो गयी है, जिससे पेट तो भर जाता है, पर वास्तविक शक्ति नहीं मिलती है और परिणाम मिलता है विभिन्न बीमारियां व रोग।



क्या है अच्छे स्वास्थ्य व खुशहाल जीवन का पहलू



प्राकृतिक चीजें, वस्तुएं जो भी हों मृत या जीवित, उनका सीधी संबंध दुनियां के निर्माता भगवान से है, जिसे लोग अपने धर्म, रीति-रिवाज व आर्थिक आधार पर अपने घर, परिवार और समूह में विविध प्रकार से पूजते हैं। सभी लोग जो भी भगवान को अपना मूल आधार समझते हों या नहीं, उन्हें एक बात तो अवश्यक रूप से समझनी चाहिए कि हम सभी लोग अपने-अपने भगवान सहित एक ही जगह निवास करते हैं अर्थात अपना जीवन यापन करते हैं। क्या सभी को अपने-अपने दैनिक कार्य करने में सहायक, मुख्य आधार हम सभी की वास्तविक मां, पृथ्वी है? शायद ही नहीं पूरा विश्वास होना और रखना चाहिए कि पृथ्वी ही हमारी वास्तविक मां है, जिसे हमें साफ, स्वच्छ व प्रदूषण मुक्त रखना चाहिए, ताकि हम अपने जीवन से संबंधित हर कार्य और अधिक आसानी और अच्छे से कर पाएं। इसलिए सभी लोगों से विनम्र निवेदन है कि हमें अपने भगवान की पूजा करने से पहले धरती माता की पूजा करनी चाहिए, और प्रण करना चाहिए कि हम इसे स्वच्छ व प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए अपने से संभव भरसक प्रयास करने चाहिए।



प्राकृतिक शक्ति निहित हमारे दैनिक जीवनचर्या की एक नहीं अनेक उपयोगी चीजें इस पृथ्वी मां के आंचल में समाए हुए हैं, जिनका उपयोग मनुष्य अगर उचित तरीके और समयानुसार करे तो समझो उसे आजीवन किसी बनावटी चीजों का सहारा नहीं लेना पड़ेगा और हमेशा स्वस्थ और तंदुरूस्त रहेगा।




आश्चर्यजनक है इस पृथ्वी मां की प्रकृति



मनुष्य अधिक विकसित हो गया तो वह कई आधुनिक तकनीकों से तरह-तरह के उपाय अपनाता है और अपने जीवन को अधिक समर्थ बनाता है। क्या मनुष्य के अलावा अन्य जीव-जंतु, पेड-पौधे, पशु-पक्षियां भी स्वयं आधुनिक तकनीकें उपयोग में लाते हैं, जिससे वे अपनी कला और प्रकृति से मानव-विकसित सभी तकनीकों से बहुत आगे हैं।




गौर किया होगा अलग-अलग जाति के पेड़-पौधे व पशु-पक्षियों में विशेष लक्षण होते हैं, जो उन्हें इसी पृथ्वी मां से मिले हैं – यहीं से शुरू होती है अलौकिक भगवान की, जिसका न कोई आकार है और न कोई रंग। यह हर वस्तु - जीव या मृत सभी में विद्यमान है।



जो कोई भी इन प्राकृतिक चीजों का उपयोग सीमा के अंतर्गत आवश्यकतानुसार करे, तो उसे वास्तविक जीवन का एहसास होता है और हमेशा सुखी रहता है। अनावश्यक उपभोग करने से पृथ्वी में भी अपना विकराल रूप दिखाने में देर नहीं करती है, जिसके परिणामस्वरूप मनुष्य की प्रकृति में समाए हुए सभी जीव-जंतु व वस्तु भी इससे प्रभावित होती हैं, जो मनुष्य के द्वारा प्राकृतिक चीजों पर किया गया घिनौना, शर्मनाक कार्य है। उन जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों का क्या कसूर था कि जो बिना किसी को कोई नुकसान पहुंचाए अपनी प्रकृति के अनुसार इस पृथ्वी मां की गोद में अपने जीवन-चक्र की प्रक्रिया में सहभागी थे, जो मनुष्य के विकास के नाम पर की जाने वाली अतिशय कार्यों के फलस्वरूप समय से पहले अपना अस्तित्व खो देते हैं, और मनुष्य की जीवनचर्या में अधिक जोखिम आ रहा है।



इसलिए सावधान रहें और अपनी खुशहाली की कामना करने वाले लोग, अपने परिवार के साथ-साथ हम सभी की वास्तविक मां, पृथ्वी की रक्षा करें।


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